
ब्रिक्स सम्मेलन के पहले ही बवाल शुरू हो गया है। ब्रिक्स न्यू डेवलपमेंट बैंक के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट पाउलो नोगिरो बातिस्ताव ने भारत पर ऐसी टिप्पणी कर दी कि इंटरनेट पर खलबली मच गई।
RT चैनल पर बयान: “भारत ही सबसे बड़ी समस्या है!”
ब्राज़ील के इस अर्थशास्त्री ने कहा – “कई लोगों का मानना है कि भारत BRICS में ट्रोजन हॉर्स की तरह है। वो अंदर से अमेरिका का एजेंट जैसा बर्ताव कर रहा है।”
उन्होंने सीधे तौर पर भारत की इजरायल को गाज़ा नरसंहार में समर्थन देने की आलोचना की। सवाल उठाया कि भारत गाज़ा पर चुप क्यों है, जबकि वह ग्लोबल साउथ का नेता बनने का सपना देखता है?
इजरायल पर भारत की चुप्पी = ग्लोबल साउथ की बेचैनी?
बातिस्ताव ने कहा कि भारत को चीन से डर है, इसलिए वह अमेरिका की गोदी में बैठने को मजबूर है। और जब भारत गाज़ा पर नरसंहार देखता है और चुप रहता है, तो पूरी ग्लोबल साउथ कम्युनिटी को ठेस लगती है।
सियासत का सीज़न: कभी निंदा, कभी समर्थन
SCO की बैठक में भारत ने इजरायल की कार्रवाई पर चुप्पी साधी, लेकिन BRICS में जाकर वही भारत गंभीर निंदा करता है। विशेषज्ञ कहते हैं — राजनीति का मंच बदलते ही बयान भी ‘कस्टमाइज्ड’ हो जाते हैं।
क्या है ‘ट्रोजन हॉर्स’? एक ग्रीक स्टोरी, आज की डिप्लोमैसी
ट्रोजन हॉर्स एक प्राचीन ग्रीक चाल थी, जिसमें एक लकड़ी का घोड़ा दुश्मनों को गिफ्ट में दिया गया — अंदर छिपे थे सैनिक। रात में हमला हुआ और पूरा किला ध्वस्त। बातिस्ताव के अनुसार, भारत भी BRICS में वही ‘भीतरघाती घोड़ा’ बन गया है।
भारत की विदेश नीति पर सवाल: “महत्वाकांक्षा बन गई रुकावट”
कार्नेगी एन्डॉमेंट के सीनियर फेलो एश्ली जे टेलिस का भी मानना है कि भारत की “एकला चलो” नीति उसकी वैश्विक छवि को सीमित कर रही है।
“भारत को अब शीत युद्ध वाली सोच से बाहर आना होगा। वरना न चीन काबू में आएगा, न BRICS पर उसकी पकड़ बन पाएगी।”
BRICS या ब्रिक्स-ब्रिक्स? भारत की भूमिका पर अंतहीन बहस
भारत को BRICS का नरम दिल भी माना जाता है और अब छुपा एजेंट भी। जो तय है वो ये — भारत अगर डिप्लोमेसी में ‘दो नावों’ की सवारी करता रहेगा, तो हर समिट में उसके लिए सीट तो मिलेगी… पर शक की निगाह भी।